मोरे प्यारे चना, मसूर…….बे-मौसम बारिश व ओलावृष्टि से परेशान किसान ने रच दी कविता…पढ़िए आप भी

मध्य प्रदेश में बेमौसम बरसा और ओलावृष्टि ने किसानों की फसल तबाह कर दी है। अपनी फसल तबाह होने से एक किसान ने इस दर्द को कविता में बयां किया है। सागर जिले के बंडा के रहने वाले इस किसान ने अपनी कविता बुंदेलखंडी में रची है। हालांकि इस किसान की अभी पहचान नहीं हो सकी है। लेकिन उसका वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है।बुंदेलखंडी बोली में रची कविता
बुंदेलखंडी बोली में एक खेत के सामने खड़े होकर किसान कविता पाठ कर रहा है जिसमें उसने बारिश और ओलावृष्टि से फसल की बरबादी से अपनी पीड़ा को बयां किया है। चना, मसूर, गेहूं की फसल के खराब होने पर किसान की पीड़ा को काव्यात्मक रूप दिया है। हालांकि इस किसान के बारे में विशेष जानकारी नहीं मिली है लेकिन यह बुंदेलखंडी है। बुंदेलखंड के मध्य प्रदेश वाले क्षेत्र में यह किसान खूब वायरल हो रहा है और इसे सोशल मीडिया पर खूब पसंद किया जा रहा था।

यह हैं कविता के बोल
बुंदेलखंड के किसान के दर्द तो मोरे प्यारे चना, मसूर…. बोल के साथ कविता का रूप दिया गया है। 2022 में ओले गिरने का बताते हुए उसने किसानों की मजबूरी बताई है। चना, मसूर, सरसों की हालत बताई है और फसलों के तीर जैसे झुक जाने की बात को कविता में बताया गया है। कविता में गेहूं की बची हुई बालियों का जिक्र करते हुए किसान ने कहा है कि अब कोई उधार देने को भी तैयार नहीं है। इस मजबूरी के साथ किसान ने अपनी कविता को समाप्त किया है।

यह है कविता

मोरे प्यारे चना मसूर…मोरे प्यारे चना, मसूर…
हमें छोड़के काएं चले गए, हम तो भए मजबूर….मोरे प्यारे चना, मसूर…
अरे 2022 में ओरे गिर गए, हमसे हो गए दूर…2022 में ओरे गिर गए, हमसे हो गए दूर
हमें छोड़के काएं जात रै, हम तो भए मजबूर….मोरे प्यारे चना, मसूर….
मसरी, चना, बटरी, सरमां, इनमें कछू है नईं आ…मसरी, चना, बटरी, सरमां, इनमें ये मैं कछु नईंआ… 
वो तो ऐसे लगत है जैसे तीर धनइयां…वो तो ऐसे लगत है जैसे तीर धनइयां…
मोरे प्यारे चना मसूर
गेहूं की तनक बाले बचन रहीं, हम हो गए मजबूर
जेई बालियां बचइयो ईश्वर, हम तो हैं मजबूर….
जौन सेठ लो मांगन जावें ओ केवे है नईं या….
अब केसों मैं करों राम दईं, का हौ राम करइयां….

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